Saturday, October 30, 2010

भूलना भूल गये हैं

भूलना भूल गये हैं


ढ़लते हुए सूरज की शीतलता भूल गये हैं
रात के सन्नाटे की खामोशी भूल गये हैं
टिमटिमाते तारों की च्मक भूल गये हैं
काम करना सीख गये पर जीना भूल गये हैं

ओंस के बूँदों की कोमलता भूल गये हैं
बरसते हुए पानी की खुशी भूल गये हैं
बहती हुई हवा की सनसनाहट भूल गये हैं
सपने देखना सीख गये पर जीना भूल गये हैं

आँखों की मुस्कराहट का मतलब भूल गये हैं
रूठते तो वो पहले भी थे पर हम मानना भूल गये हैं
दोस्त मिल गये पर उनसा मिलना भूल गये हैं
अकेले रहना सीख गये पर जीना भूल गये हैं

चहकते हुए परिंदों की चचच्छहत भूल गये हैं
उच्छलते हुए बचपन की किलकरी भूल गये हैं
उड़ना सीख गये पर चलना भूल गये हैं
पहले का सब याद हैं लगता हैं भूलना भूल गये हैं

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